मोहयाल ब्राह्मण
वो बहादुर कौम जिन्होंने सबसे पहले अरब आक्रमण का मुँह तोड़ जवाब दिया और अब्दुल अज़ीज़ का सर मैदान में उतार दिया
वो ब्राह्मण जिनकी शरण में मुहम्मद का नवासा हुसैन आना चाहता था पर यदिद ने जाने ना दिया
वे बहादुर लोग जिन्होने यदिद को मौत के घाट उतार कर हुसैन की मौत का बदला लिया
वो सहनशील लोग जिन्होंने बौद्ध धर्म का भी सम्मान किया और बौद्ध लोगों को रहने की अनुमति दी पर बौद्धों द्वारा विश्वासघात और गद्दारी करने पर उनका काल बने और सनातन धर्म की स्थापना की
वो शेरदिल दाहर ही था जिसने 13 बार अरब लड़ाकों को धुल चटाई परंतु अपने ही बौद्ध प्रजा और मुसलमान फ़ौज की गद्दारी से हार गए
पहली बार मैदान ऐ जंग में सर देने वाले दाहिर शाह ही थे जिन्होंने धर्म नही हारा और अंत तक लड़ते रहे और खेत हुए
वे वीरांगनाएँ जिन्होंने दुनीयाँ में सबसे पहले जौहर किया और सिंध के अरोर और ब्रह्मनाबाद की जंग में हिंदुओं के हारने के बाद सामूहिक सती हुई जलती हुई अग्नि में कूद कर
वो कौम जिसकी औरतों की बहादुरी के किस्से सुनकर अरब भी भौचक्के रह गए
वो ब्राह्मण राजा जो 300 साल अफ़ग़ानिस्तान पर राज करते रहे और हिंदुस्तान में इस्लाम को आने से रोक कर रखा
वो महान् लोग जिन्होंने सबसे पहले ग़ज़नी और ग़ौर पर हमला किया और लोहा मनवाया
वो कौम जो लाहौर सिंध ग़ज़नी काबुल बठिंडा और पंजाब से ज़्यादातर हिस्सों में हारने के बाद भी चैन से ना सोई और मुस्लमान आक्रांताओं के खिलाफ जंग लड़ती रही। अपना सब कुछ खो कर
वो कौम जिसने आज के मथुरा में अपनी राजशाही स्थाापित की और पंजाब में वक़्त वक़्त पर आ कर अपनी पहचान बरक़रार रखी
वो लड़ाकू ब्राह्मण जिन्होंने दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान जी के साथ मिल कर मुहम्मद ग़ौरी से तरावड़ी (तैराइन) में 2 जंग लड़ी और आखिरी जंग में खेत रहे पर मैदान से भागे नही
वो ब्राह्मण जिन्होंने अलग अलग वक्त पर अलग अलग राज घरानों में अपनी सेवाएं दी
भारत के शायद एकमात्र लोग जिनसे कई मुस्लमान राजशाहियों ने जज़िया नही वसूला और अपने दरबार में ऊँचे औहदे दिए
वो शूरवीर ब्राह्मण जिन्होंने बाबर को चुनौती दी और इक खत्री (क्षत्रिय) बहन की इज़्ज़त बचाने के लिए 2 युद्ध लड़े और नाकों चने चबवाये। कहा जाता है के पिनाद के युद्ध मे बाबर ने इक गद्दार के ज़रिये पता लगवाया और उस वक़्त हमला किया जब सब लोग खाना खा रहे थे। निहत्थों पर हमला किआ और सारे मर्द मार दिए।औरतों ने जौहर कर लिया
वो कौम जो आज के पाकिस्तान के इक बड़े हिस्से पर हमेशा राज करती रही। रोहतास का किला भी इन्होंने ने बनवाया।
वो लोग जिन्होंने सिख पंथ को अपने सर,खून और ज़िन्दगी दे कर उसे पाला।
गुरु हरगोबिन्द से ले कर रणजीत सिंह के वक़्त तक हमेशा तलवार बन कर खड़े रहे
बाबा प्राग दास
माती दास
सती दास
पंडित किरपा राम दत्त
केसर सिंह
चौपा सिंह
निहंग गुरबक्श सिंह
सरीखे सैकड़ों महान् मोहयाल योद्धा रहे सिख फ़ौज में
वो ब्राह्मण जिन्होंने कश्मीरी ब्राह्मणों की टोली के साथ चमकौर के द्वार पर आखिरी सांस तक लड़ते रहे और मुगलिया और तुर्क फौजों से लड़ते हुए शहीद हुए।गुरु गोबिंद सिंह की जान बचाने का श्रेय इन्ही को जाता है!
कर्मो माई दत्ताणी,इक सिख राज की बड़ी योद्धा हुई। अपना इक न्यायलय चलातीं थीं अमृतसर में।बुरे काम करने वाले और जरैअमपेशा लोगों के अंदर उनका बहुत खौफ था।
माई कर्मों के नाम से आज वहां इक चौंक भी है।
वे कर्मशील रणबांके जो पंजाब के इक बड़े हिस्से में जागीरदारी चलाते थे । कई भव्य मंदिर बनाये गए इनके दौर में।आज ज़्यादातर तोड़ दिए गए!
मुहम्मद शाह रंगीला ने जब इक मोहन जाति के दीवान को ज़बरदस्ती मुस्लमान बना दिया तब ममदोत के सारे मोहन इनके खिलाफ लामबंध हो कर आखिरी सांस तक लडे और मुगल फौजदार को ग़ुलाम बनाया। आखिर में पूरी मोहन जाति शहीद हो गई। औरते सति हो गयी।
गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु के पश्च्यात बन्दा बैरागी ने कमान संभाली। मोहयाल लहू ने अपना रंग दिखाया और लाहौर से सहारनपुर , दिल्ली तक मुगलिया सल्तनत की इंट से इंट बजा दी। अफ़ग़ानों को पहली बार अपने कर्मों की सज़ा मिली
रणजीत सिंह की फ़ौज से ज़्यादातर अंगरक्षक और काफी सिपहसलार मोहयाल ब्राह्मण थे। इनके राज की शाही मुहर भी इक दत्त परिवार के पास थी। अंग्रेजों ने खालसा राज के खात्मे और पंजाब विलय के बाद जब इनसे मुहर मांगी तो इन्होंने मुहर दे कर अपने गुज़रे हुए राजा से गद्दारी करने से बेहतर ज़हर खाना समझा। मुहर इन्होंने आग में जला दी
मुसलामानों से कश्मीर और तिब्बत(लद्दाख) जीतने वाले योद्धा भी मोहयाल ब्राह्मण ही थे!
मोहयाल ब्राह्मणों ने अंग्रेजी फ़ौज में अपनी बहादुरी के झंडे गाड़े और अफ़ग़ानिस्तान से ले कर चम्बल तक अपनी दिलेरी का लोहा मनवाया। चम्बल के डाकू ख़त्म करने का श्रेय इक मोहयाल अफसर को ही जाता है!
अंग्रेजी हुकूमत में 3 कौमों को martial race का दर्जा दिया गया। जाट सिख, पठान मुसलमान, मोहयाल ब्राह्मण
बलोचिस्तान में और अफ़ग़ानिस्तान में सबसे भीषण जंगों में इन्होंने जीत के परचम लहराये।
आर्डर ऑफ़ मेरिट class 1 और class 2 जो विक्टोरिया क्रॉस के बराबर था इन्होंने दर्जनों बार प्राप्त किया। सरदार गण्डा सिंह दत्त ORDER OF MERIT ORDER OF BRITISH EMPIRE CLAsS 2 मिला जो उस वक्त का सबसे बड़ा तमगा था।
Post written by निखिल मोहन